उपचारात्मक क्षेत्राधिकार से सम्बंधित मामला
- सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार किसी उपचारात्मक याचिका में किसी मध्यस्थ फैसले को खारिज कर दिया।
मुख्य बिंदु:
- हालिया मामला दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन और दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा है।
- सुरक्षा चिंताओं और बाद में मध्यस्थता के कारण अनुबंध समाप्ति पर केंद्रित विवाद।
- न्यायालय का मध्यस्थता में न्यूनतम हस्तक्षेप के अपने रुख से विचलन।
उपचारात्मक(क्यूरेटिव) क्षेत्राधिकार
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2002 में उपचारात्मक क्षेत्राधिकार की शुरुआत की है।
- यह अपने निर्णयों को, उनके अंतिम हो जाने के बाद, सुधारने की शक्ति है।
- यह भारतीय कानून के तहत समीक्षा की शक्ति से अलग है, जो सभी अदालतों को उनके रिकॉर्ड से स्पष्ट त्रुटियों को सुधारने में सक्षम बनाता है।
- उपचारात्मक क्षेत्राधिकार का अर्थ केवल न्यायालय द्वारा कानून की स्थिति पर अपना दृष्टिकोण बदलना नहीं है, बल्कि किसी विशिष्ट मामले में न्यायालय का अपना दृष्टिकोण बदलना है, जो समीक्षा की शक्ति से भी ऊपर और परे है।
- सुधारात्मक याचिकाओं की सुनवाई आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा की जाती है और केवल असाधारण मामलों में ही विचार किया जाता है, जहां याचिकाकर्ता यह स्थापित कर सकता है कि न्याय का घोर पतन हुआ है।
- इस शक्ति का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखना और यह सुनिश्चित करना है कि उन मामलों में भी न्याय मिले जहां मूल निर्णय में कोई चूक या त्रुटि हुई है।
उपचारात्मक क्षेत्राधिकार से संबंधित समस्याएँ:
- उपचारात्मक क्षेत्राधिकार प्रभावी रूप से सर्वोच्च न्यायालय है जो अपनी गलतियों को सुधारना चाहता है।
- हालाँकि अपनी गलतियों को सुधारने में योग्यता है, एक संस्था जो देश की न्यायपालिका को रेखांकित करती है और जो संविधान की अंतिम व्याख्याकार है, उसे व्यक्तिगत मामलों में त्रुटियों से परे देखना चाहिए।
- सर्वोच्च न्यायालय कानून का प्रकाश स्तंभ है, हम उम्मीद करते हैं कि यह एक ध्रुव तारे की तरह होगा। किसी व्यक्ति के लिए अपने निर्णयों पर दोबारा विचार करना अच्छा है, लेकिन कानून घोषित करने वाली संस्था के लिए यह अच्छा नहीं है।
- बदलते रुझानों के आधार पर आगे-पीछे झूलने वाले सुप्रीम कोर्ट में दृढ़ता और गंभीरता का अभाव है, जिसे हम अंतिम उपाय की अदालत के लिए मौलिक मानते हैं।

