अमीर खुसरो: भारत में ग़ज़ल के पितामह
| पहलू | विवरण | |--------------------------|-----------------------------------------------------------------------------| | ग़ज़ल का सिंहावलोकन | - एक काव्य रूप जो प्रेम, दुःख और गहरी भावनाओं को व्यक्त करता है। | | | - इसकी उत्पत्ति फारस में हुई, बाद में भारत और पाकिस्तान में लोकप्रिय हुई। | | ग़ज़ल के पिता | - अमीर खुसरो को भारत में ग़ज़ल का जनक माना जाता है। | | | - उन्होंने फारसी और भारतीय शैलियों का मिश्रण करके ग़ज़ल को भारत में लोकप्रिय बनाया। | | अमीर खुसरो का जीवन | - दिल्ली सल्तनत काल (1253-1325 ईस्वी) के दौरान रहे। | | | - उत्तर प्रदेश के पटियाली में जन्मे, जिनके पिता तुर्क और माँ भारतीय थीं। | | | - सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के अनुयायी थे। | | | - फारसी, हिंदवी और पंजाबी में कविताएँ लिखीं। | | योगदान | - नए विषयों का परिचय दिया, जिससे ग़ज़ल भारतीय दर्शकों के लिए आकर्षक बनी। | | | - उनकी ग़ज़लें भावुक, भक्तिमय और संगीतमय लय से परिपूर्ण थीं। | | प्रसिद्ध ग़ज़लें | - छाप तिलक सब छीनी | | | - ए चेहरा-ए ज़ेबा | | | - जब यार देखा नैन भर | | अन्य रचनाएँ | - मोहे अपने ही रंग में | | | - ईदगाहे मां गरीबाँ | | | - गुफ़्तां के रोशन | | | - दिलाश गर मेहरबाँ | | | - दी शब के मी रफ़्तीब ता | | | - बखूबी हम चो मे |

