भारत में मगरमच्छ संरक्षण परियोजना के 50 वर्ष
| मुख्य पहलू | विवरण | |-----------------------------|-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------| | आयोजन | भारत के मगरमच्छ संरक्षण परियोजना (सीसीपी) की 50वीं वर्षगांठ विश्व मगरमच्छ दिवस (17 जून, 2025) पर मनाई गई | | परियोजना का शुभारंभ | 1975, भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान, ओडिशा में | | समर्थित संस्थाएं | यूएनडीपी और एफएओ | | संरक्षण विधि | "रियर एंड रिलीज" - अंडों/बच्चों को पकड़ना, कैद में पालना और संरक्षित क्षेत्रों में छोड़ना | | संरक्षित आवास | भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान, सतकोसिया बाघ अभयारण्य, आदि | | संरक्षित प्रजातियां | घड़ियाल (Gavialis gangeticus - गंभीर रूप से संकटग्रस्त), मगर (Crocodylus palustris - असुरक्षित), खारे पानी का मगरमच्छ (Crocodylus porosus - कम चिंताजनक लेकिन स्थानीय रूप से खतरे में) | | पारिस्थितिक महत्व | सबसे बड़े जीवित सरीसृप; मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र (नदियाँ, दलदल, झीलें) में रहते हैं; खारे पानी की प्रजातियाँ तटीय मुहानों में; पोइकिलोथर्मिक (ठंडे खून वाले) और मुख्य रूप से निशाचर | | खतरे | निवास स्थान का विनाश, अंडे का शिकार, अवैध शिकार, बांध और रेत खनन | | आबादी का अनुमान | घड़ियाल: ~3,000 (चंबल, सोन, कतरनियाघाट अभयारण्य); खारे पानी के मगरमच्छ: ~2,500 (भीतरकणिका, सुंदरबन, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह); मगर: व्यापक (गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश) | | परियोजना का प्रभाव | लगभग विलुप्त प्रजातियों का पुनरुत्थान; कैद में प्रजनन, निवास स्थान संरक्षण और सामुदायिक जागरूकता को बढ़ावा दिया; वैश्विक सरीसृप संरक्षण के लिए एक प्रतिकृति योग्य मॉडल बन गया | | वैश्विक महत्व | भारत में दुनिया की 80% जंगली घड़ियाल आबादी है; ओडिशा एकमात्र भारतीय राज्य है जहाँ तीनों देशी मगरमच्छ प्रजातियाँ जंगल में फल-फूल रही हैं |

