जेलों में जातिगत भेदभाव पर ध्यान देने की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि भारत भर की जेलों की चारदीवारी के भीतर कैदियों के साथ जाति-आधारित भेदभाव एक "बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा" है और इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
मुख्य बिंदु
- भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पाया कि 10 से अधिक राज्यों में जेल मैनुअल में ऐसे प्रावधान हैं जो जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव और जबरन श्रम को मंजूरी देते हैं।
- राज्य में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं।
सुनील बत्रा मामला
- एक कैदी को सभी संवैधानिक अधिकार और सुरक्षा प्राप्त हैं, सिवाय उन अधिकारों के जो कारावास के परिणामस्वरूप स्वाभाविक रूप से और सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं
मॉडल कारागार अधिनियम 2023
- जेलों में मोबाइल फोन जैसी प्रतिबंधित वस्तुओं के इस्तेमाल पर कैदियों और जेल कर्मचारियों के लिए सजा का प्रावधान।
- उच्च सुरक्षा जेलों, खुली जेल (खुली एवं अर्ध-खुली) की स्थापना एवं प्रबंधन।
- दुर्दांत अपराधियों और आदतन अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों से समाज की रक्षा के लिए प्रावधान।
- अच्छे आचरण को प्रोत्साहित करने के लिए कैदियों को कानूनी सहायता, पैरोल, छुट्टी और समय से पहले रिहाई प्रदान करना।
- जेल प्रशासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से जेल प्रशासन में प्रौद्योगिकी के उपयोग के प्रावधान हैं।
- अदालतों के साथ वीडियोकांफ्रेंसिंग, जेलों में वैज्ञानिक और तकनीकी हस्तक्षेप आदि का प्रावधान।
प्रीलिम्स टेकअवे
- मॉडल कारागार अधिनियम 2023
- मौलिक अधिकार

